सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की गंगा स्वच्छता की पोल खोलती उत्तरकाशी के गंगा घाटों की तस्बीरें
बतादे आनेवाले दिन शुक्रवार को मकर संक्रांति पर्व है। और गंगा तटों पर स्नान करने को लेकर हजारों की संख्या में देव डोलियों के साथ श्रद्धालुओं का हुजूम पहुचता है। किन्तु गंगा तटों के किनारे रहने वाली रिहायशी घरों का गंदा पानी सीधे गंगा तट से नदी में प्रभाहित हो रहा है।
जिससे गंगा का पानी दूषित होता रहता है जो भारत सरकार के निर्मल गंगा जैसे स्लोगन को मुह चिढ़ा रहा है। ऐसा नही है कि इसकी जानकारी शहर में गंगा के नाम पर चला रहे विभिन्न धार्मिक संस्था वाले लोगों को नही है। किन्तु क्यो मौन है यह बात कई सवालों को जन्म देती है।
और इस बात की सत्यता के प्रमाणित करने के लिए काफी है कि सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं का गंगा स्वच्छता की चिंता को लेकर कथनी और करनी में काफ़ी फर्क नजर आता है। इससे साफ साफ जाहिर होता है कि इन सभी संस्थाओं का गंगा के नाम पर धन दोहन करना ही मकसद है। अब तो गंगा को कोर्ट ने भी सजीव की संज्ञा दें चुकी है।
पहाड़ों को पृथ्वी का स्वर्ग इसलिए कहा जाता है क्योंकि पहाड़ी लोग नदी से जल लेकर नहाना धोना और जानवरों को पानी देना नदी से अलग जाकर करते हैं लेकिन बाहर से आए हुए और यहां पर आकर बसे हुए लोग इस नियम का पालन नहीं करते हैं जिसके कारण सभी जीवो की प्यास बुझाने वाली मां गंगा भागीरथी जिसमें की मैंने स्वयं अपने हाथों से अपने घर के नजदीक जोशियारा बैराज के सामने आज से लगभग 32 साल पहले जी भर कर जल पीकर अपनी प्यास बुझाई जबकि अभी मेरी उम्र 42 वर्ष है लेकिन इतने वर्षों मैं दुनिया की चाल ढाल परिवर्तन को देखते हुए अभी मैं गंगाजल से अपनी प्यास बुझाने के लिए भटवाड़ी से ऊपर की कोई भी जगह पर्याप्त है जिससे मुझे कोई झिझक या खतरा नहीं है
जवाब देंहटाएं*रमेश राज*
जय गंगा मैया